प्रत्येक व्यक्ति एक विशिष्ट भाग्य के साथ इस दुनिया में आता है – उसके पास जो कुछ है उसे परिपूर्ण करना पड़ता है, कुछ सन्देश दुनिया को देना होता है, कुछ कार्य जिन्हें पूरा करना पड़ता है। आप यहां सयोगवश नहीं हो, आपकी यहां सार्थकता है। आप के पीछे एक उद्देश्य है, सृष्टि आपके माध्यम से कुछ कराना चाहती है।
डाले आत्मचिंतन की आदत: नव–शक्ति मिलती है आत्मचिंतन से। अमेरिका के मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स अक्सर अपने छात्रों को पूजागृह में जाकर आत्मचिंतन करने के लिए प्रेरित करते थे। उनका मानना था कि शांत जगह में चिंतनशील रहकर विचार स्पष्ट होते हैं। वैसे, एक बार आत्मचिंतन का अभ्यास हो जाए तो किसी खास जगह पर जाने की जरूरत नहीं। जब कभी अवकाश मिलता है, तो हम किसी काम या मनोरंजन में अपना समय बिता देते हैं। इसकी जगह पर आत्मचिंतन करें तो अवकाश का कहीं बेहतर तरीके से सदुपयोग कर सकते हैं।
लक्ष्य को पहचानने के लिए जरूरी: भारतीय चिंतन परंपरा में मन को एकाग्र करने के लिए ध्यान की जो पद्धति विकसित है, आत्मचिंतन इसी का प्रकट रूप है। पर यह तभी संभव है, जब हम इसे बिना उद्वेग अथवा मानसिक दबाव के कर सकें। यह ध्यान रखना होगा कि जब हम अपने को बिना जाने–समझे आगे बढ़ने लग जाएं और यूं ही कोई लक्ष्य निर्धारित कर लें तो भटकाव होगा। इस भटकाव के कारण विभिन्न तरह की चिंताएं हावी हो जाती हैं। इसलिए जिस चीज से आपका लगाव हो, उसके महत्व और उपयोगिता को समझें और फिर उसे आत्मसात करें। आप जो करने जा रहे हैं, उसका परिणाम क्या होगा या जो कर रहे है, उसकी उपयोगिता जीवन में क्या यह आप आत्मचिंतन के बिना नहीं समझ सकते।
हो सके स्वयं का विस्तार: यदि आप सोच रहे हैं कि आत्मचिंतन का कोई खास तरीका या कोई एक निश्चित प्रणाली है, तो ऐसा नहीं है। इसके लिए बस आपको किसी शांत स्थान पर बैठकर अपने मन को एकाग्र करना है। इस दौरान आपको मन कभी शांत नहीं रह सकता। यदि हम इसे शांत करने या नियंत्रित करने का अभ्यास न करें तो यह अपने उसी स्वरूप में रहेगा। आत्मचिंतन के जरिए भटकाव से मन को रोकना है। क्षुद्र विचार जो मन को परेशान और बेचैन रखते हैं, उन्हें हटाने का प्रयास करना है। इस दौरान मन को वहा टिका दें, जहां पहुंचकर हमारे विचार स्पष्ट हों। अपनी कमजोरियों को पहचान सकें। आत्मचिंतन के समय मन को उच्च भावों पर टिका देना है। वे उच्च भाव, जो हमारे स्व: का वितार कर सकें।
अपना दीपक स्वयं बनना है: हम खुद की तरफ देखें तो अपनी गलतियों को देख सकेंगे और उन्हें दूर करने के प्रयास कर सकेंगे। यदि अच्छे कार्य किए हैं तो उसे और बेहतर करने का प्रयास भी आत्मचितन से संभव है। महात्मा बुद्ध के कथन को याद रखें। यही कि व्यक्ति को जितना कोई बाहरी सिखा सकता है, उससे कहीं अधिक वह अपने स्वाध्याय, आत्मावलोकन तथा आत्मचिंतन से सीख सकता है। इसलिए वह हमेशा कहते हैं, ‘अप्प दीपो भव’ यानी अपने दीपक स्वयं बनो। अपनी बुद्धि, चिंतन एवं आत्मावलोकन से अपने जीवन को प्रकाशित करो। आत्मचिंतन से प्राप्त किया हुआ ज्ञान याद रहता है और हमेशा व्यक्ति को सही निर्णय लेने में मददगार होता है। क्योंकि यह गहन अनुभव, चिंतन और आत्मावलोकन पर आधारित होता है।